Monday, June 11, 2018

उत्तरी कमान के कमांडर के लिए चुनौतियाँ






सर्जिकल स्ट्राइक ख्याति के जनरल रणबीर सिंह ने 01 जून को  उत्तरी कमान की बागडोर संभाल ली है.भारतीय सेना की उत्तरी कमान हमेशा से आपरेशंस में रही है. और यही अकेली कमान भी है जो कि चीन और पकिस्तान दोनों ही प्रतिद्वंदियों के विरुद्ध तैनात है. इसके साथ ही कमान पर कश्मीर घाटी में चल रहे आतंकवादियों के खिलाफ अभियान की भी ज़िम्मेदारी है. इसलिए उत्तरी कमान के कमांडर का इन सब विषयों में पारंगत होना निहायत ज़रूरी है. एक ऐसे समय में जब कि आतंकियों की कमर टूट चुकी है, उत्तरी कमान के सर्वोच्च अधिकारी की ज़िम्मेदारी है कि न केवल आतंकियों पर दबाव बना कर रखा जाये, बल्कि पुलिस और अन्य  सुरक्षा बलों के साथ मिल कर ऐसी स्थिति पैदा की जाये कि आम आदमी सुरक्षित महसूस करे. इसके साथ ही ऐसी हर बात को जिस को कि अलगाववादी तत्व और आतंकवादी आम जनता को बहकाने में इस्तेमाल कर सकें, मद्देनज़र रखना होगा. उत्तरी कमान का इलाका बहुत विस्तृत है और लड़ाई के प्रकार असंख्य. सियाचिन, नियंत्रण रेखा, चीन, घाटी, सीमा पार से घुसपैठ और घाटी में तनाव का माहौल जनरल के समक्ष बड़ी चुनौतियाँ हैं. इसके अलावा सोशल मीडिया पर जो छद्म युद्ध चल रहा है उस पर भी कड़ी नज़र रखनी होगी. देश विदेश में भाड़े की कई एजेंसियाँ मानवाधिकार मुद्दे को भुनाने में लगी हैं, इनसे निपटने के लिए भी कारगर कदम उठाने होंगे. राजनैतिक हल के लिए जनरल रणबीर को अनुकूल स्थिति देनी होगी और विभिन्न दलों को भी आपसी मतभेद मिटा कर दीर्घकालिक समाधान ढूंढना होगा. ऐसा अब तक हुआ नहीं है और राज्य के कई दल समक्ष और परोक्ष रूप से अलगाव का समर्थन करते रहे हैं. आतंकवादियों  की भरपूर कोशिश है कि शांति स्थापित न होने पाए. पकिस्तान की इस सस्ती युद्ध नीति का कारगर तोड़ खोजना जनरल रणबीर के लिए बड़ी चुनौती है. हाल ही में आतंकवादियों के बड़े कमांडरों को सुरक्षा बलों ने मार गिराया है. जनरल रणबीर की नीति तय करेगी कि कितनी जल्दी घाटी में सुरक्षा की स्थिति बदलती है. काम आसान नहीं है पर उत्तरी कमान कई दशकों से इन मुद्दों से जूझ रही है.
सभी प्रकार की युद्ध शैली में निपुण जनरल रणबीर ने देश और विदेश में सक्रिय सेवा की है और सेना मुख्यालय मिलिटरी आपरेशन शाखा में भी काफी समय तक  रहे हैं. उन्हीं के DGMO कार्यकाल के दौरान सीमापार आतंकी ठिकानों पर सर्जिकल स्ट्राइक कर के हमारी युद्ध नीति में एक नए अध्याय की  शुरुआत हुई थी.  १९८० में डोगरा रेजिमेंट में कमीशन लेने वाले जनरल रणबीर का उत्तरी कमान की बागडोर संभालना कश्मीर समस्या पर हमारी गंभीरता का परिचायक है. ‘वर्दीवाला’ टीम जनरल रणबीर को एक अच्छे कार्यकाल की शुभकामना देती है.


महासागरों को मणिपुर की चुनौती : लेफ्टिनेंट विजया की शौर्य गाथा


देश के सुदूर पूर्व में छोटे से गाँव के एक किसान की बेटी क्या नहीं कर सकती अगर मन में ठान ले तो. यही कहानी है वर्दीवाला के इस अंक की नायिका की. आज से कुछ वर्ष पहले मणिपुर के बिश्नुपुर जिले में जन्मी विजया देवी ने कभी सोचा भी नहीं था कि एक दिन वो दुनिया भर के महासागरों को एक छोटी सी नौका से चुनौती देगी. बिश्नुपुर, इम्फाल घाटी से लगा हुआ एक सुन्दर इलाका है जो कि किसी समय आतंकवाद से सबसे ज्यादा प्रभावित था. ऐसे में वहाँ की लड़की का सेना में जाना अपने आप में एक बड़ी बात है.  न मणिपुर में न दिल्ली में अपनी स्नातकोत्तर पढाई करते समय विजया को कभी ये इल्म था कि वो एक दिन नौसेना की सफ़ेद वर्दी पहने गहरे नीले सागरों की सवारी करेगी. पिता कुंज्केश्वर  और माता बिनासखी देवी कि 29 वर्षीय पुत्री ने हाल ही में एवरेस्ट चढ़ने से भी कहीं ज्यादा जोखिम भरे काम को अंजाम दिया.  विजया ने दिल्ली से अंग्रेजी में एम.ए किया और तत्पश्चात बी. एड करने के बाद 2012 में नौसना की शिक्षा शाखा में बतौर अधिकारी प्रवेश लिया. हमेशा कुछ नया करने को तत्पर विजया को जब ‘तारिणी’ मिशन के लिए चुना गया तो उनकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा. 6 महिला अधिकारियों की टीम ने कुल 8 महीनों में तीन महासागरों को पार किया और और चार महाद्वीपों में पाँच देशों की धरती पर पाँव रखा. 254 चुनौती भरे दिन और हर एक दिन ऊंची लहरों, ख़राब मौसम और अनजाने कितने ही खतरों से खेलती हुई विजया और उनकी टीम अभी हाल ही में वापस स्वदेश लौटी है.
मणिपुर राइफल्स से रिटायर हुए उनके पिता ने विजया को वर्दी की ओर आकर्षित किया. धुन की पक्की विजया ने कड़ी म्हणत और लगन से वर्दी पहनने के अपने सपने को साकार किया. तारिणी मिशन पर जाने से पहले विजया नौसेना अकादमी में 2 वर्ष तक प्रशिक्षक रह चुकी हैं. संगीत और कलाकारी की शौक़ीन लेफ्टिनेंट विजया ने नौसेना के इतिहास में अपना नाम स्वर्णाक्षरों में लिख दिया है. उनकी शौर्यगाथा आतंकवाद से जूझ रहे मणिपुर के युवाओं को साहस और देशप्रेम का सबक देगी और चुनौतियों से मुकाबला करने की हिम्मत भी. विजया के विजयी जज़्बे को ‘वर्दीवाला’ टीम का सलाम. 

राष्ट्रीय रक्षा अकादमी के शिक्षण स्टाफ पर सीबीआई का छापा ( देश की प्रमुख सैन्य शिक्षण संस्था के साथ गलत खिलवाड़ )

(वेब पोर्टल mediawala.in के अंतर्गत सेनाओं से जुड़े स्तम्भ 'वर्दीवाला' में मेरे लेख .... पढ़ते रहिये ....)

राष्ट्रीय रक्षा अकादमी के शिक्षण स्टाफ पर सीबीआई का छापा
( देश की प्रमुख सैन्य शिक्षण संस्था के साथ गलत खिलवाड़ )

राष्ट्रीय रक्षा अकादमी के शिक्षण स्टाफ पर सीबीआई का छापा
( देश की प्रमुख सैन्य शिक्षण संस्था के साथ गलत खिलवाड़ )

राष्ट्रीय रक्षा अकादमी देश की ही नहीं पूरे विश्व की सभी अकादमियों से अलग और ऊपर है. वहाँ तैयार होते हैं न केवल हमारी तीनों सेनाओं के भावी अधिकारी, बल्कि दूसरे देशों के प्रशिक्षु भी . मैंने अपने जीवन में कुछ अच्छा और नया सखा तो मैंने वहीं सीखा. देश, वर्दी, टीम, संघर्ष, भाईचारा, बलिदान  और भी न जाने कितने आदर्श जो कि आप हमें सिर्फ  पुस्तकों में मिलते हैं, राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में एक कैडेट के जीवन का अभिन्न अंग हैं. सैनिक जीवन के मूल मन्त्र किसी योगशाला या धर्मशाला में नहीं बल्कि ऐसे संस्थानों में मिलते हैं. ऐसे में सीबीआई की रेड और उसे एक अलग ही रंग देने का मीडिया का उतावलापन एक महान संस्थान की छवि पर ऊँगली उठाते हैं.

मैंने राष्ट्रीय रक्षा  में  अकादमी सन 1989 में  प्रवेश लिया और तीन वर्ष के लम्बे प्रशिक्षण में एक साधारण युवक से युवा सैनिक में परिवर्तित हो गया. अकादमी में JNU से  स्नातक की डिग्री मिलने का प्रावधान  है जिस के लिए  अकादमी की शिक्षा शाखा में असैनिक (सिविलियन)  स्टाफ होता है. हमारे समय के अध्यापक और विभागाध्यक्ष अकादमी के सैनिक प्रशिक्षकों से भी अधिक उत्साहित हुआ करते थे और कई शिक्षक तो दो से भी अधिक दशकों से वहाँ कार्यरत थे. ये वो समय था जब कि उनकी चयन प्रणाली में किसी बाहरी संस्था का हाथ नहीं था. असिस्टेंट प्रोफेसर के पद से कार्यकाल शुरू करने वाले अध्यापक एक एक सीढ़ी चढ़ के प्रोफेसर और फिर विभागाध्यक्ष के पद पर पहुँचते थे.  2007 के बाद ये ज़िम्मा UPSC को मिला और हर स्टार पर अलग चयन प्रक्रिया पर आधारित सीधी भर्तियाँ होने लगीं. साथ ही देश के बाकी संस्थानों में चयन प्रक्रिया में जो गड़बड़ियाँ और धांधलियां होती हैं, यहाँ भी धीरे धीरे आने लगीं. UPSC एक बड़ी संस्था है और उस पर ऊँगली नहीं उठाई जा रही. पर वहाँ काम करने वाले लोग देश की सुरक्षा की मर्यादा और उसकी गंभीरता से अपरिचित हैं.  मामले की जाँच चल रही है और शिक्षकों की नियुक्ति में बड़ी गड़बड़ी पायी गयी है. प्रधानाचार्य ओम प्रकाश शुक्ला के साथ कई  अन्य शिक्षक हैं जिन पर गलत दस्तावेज़ प्रस्तुत करके पहले प्रविष्टि और तत्पश्चात पदोन्नति पाने का आरोप लगा है. ध्यान रहे कि चयन प्रक्रिया से अकादमी को अलग रखने का नतीजा है कि ऐसे लोग राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में नियुक्त हो रहे हैं, जिनका अपना चरित्र संदिग्ध है. आग्रह है कि भ्रष्टाचार को इन संस्थाओं से परे रखें और इन संस्थाओं के भी चयन के नए मानदंड तय करें.  कृपा कर के सेना की नींव को कमज़ोर न करें. कैडेट, जिन्होंने आगे जा कर देश की सुरक्षा की बागडोर संभालनी है उनको  नैतिक, मानसिक और शारीरिक तौर पर सही प्रशिक्षण देना पूरे देश की साझी ज़िम्मेदारी है. मैंने उन तीन वर्षों में जितना सैन्य प्रशिक्षकों से सीखा उतना ही अपने सिविलियन शिक्षकों से भी. वो सब आज भी हमारी स्मृतियों का अभिन्न हिस्सा हैं क्यूंकि उस वक़्त वे सभी राष्ट्रीय रक्षा अकादमी के आधार स्तम्भ थे. सीबीआई की जांच का अनुरोध भी रक्षा अकादमी के अधिकारियों ने ही किया था . सोचने और विचारने का विषय तो है ही, सख्त कदम उठाने का भी समय है. UPSC और चयन प्रक्रिया से जुड़े सभी महकमों को आतंरिक जाँच कर के गलत व्यक्तियों को दण्डित और निष्कासित करना होगा. राष्ट्रीय रक्षा अकादमी ही क्या किसी भी शिक्षण संस्थान की चयन प्रक्रिया पारदर्शी होनी चाहिए.

Wednesday, April 25, 2018

असमय नहीं था
अपना मिलना
तुम्हें जी लेना था
अपने में
मुझे भी खुद में
मिलने से पहले
याद कर लेने थे
प्रेम के अलावा वाले
सब पहाड़े
और देख लेनी थी दुनिया
नज़रिया बदलने से पहले
असमय तो कुछ भी नहीं होता
खिड़की के पल्ले से लटकी बूँद
कभी भी तुम्हारा
चेहरा बन जाने से पहले नहीं गिरी
धूप से बनी उस फूल की परछाई
तब तक नहीं बदली
जब तक तुम्हारा अक्स
नहीं उकेर लिया मैंने दीवार पर
असमय तो वो दवा भी
खत्म नहीं हुई थी
जिसे लेने की जल्दी में
टकराया था मैं तुम से
और तुमने ठीक समय पर ही कहा था
देख कर नहीं चल सकते
नहीं बोलती तो शायद
पहचान नहीं पाता
वो शब्द बिल्कुल नियत समय पर था
असमय था तो बस
मेरा वो पहले पहल हिचकिचाना
तुम्हें समय से पहले ही
सपना कर लेना
और फिर अपने ही संकोच में
उसे छू न पाना
असमय था वो वक़्त के आखिरी कुछ पलों का
अपने समय से पहले ही बीत जाना
और असमय है ये कविता
जानता हूँ कि
इसे कभी नहीं पढ़ोगी तुम
कि समय से चलता समय
एक समय के बाद
दीवार हो जाता है।
अमरदीप
23/04/2018

स्वेटर और प्रेम

तुम नहीं समझोगे
कि चाहतों का ये स्वेटर
कितनी बार उधेड़ा बुना गया है
और कितनी बार
लिया गया है ख़्वाबों का नाप
कितनी बार मन ही मन
पहनाया गया है इसे तुम्हें
दूरियों की सर्दियाँ
शुरू होने से पहले
और कितनी बार सिर्फ
सोच कर मुस्कुराया गया है

तुम अपने वक़्त के गर्म कोट में
नहीं समेट सकते
मेरे स्वेटर की भावनाएँ
बंद गले की ही तरह जो
चिपकी हैं तुम्हारे इर्द गिर्द
न ही दो बटन सहेज सकते हैं
कई सौ मीटर ऊन से लिखे
बिना शब्दों के गीत
ढीला है तुम्हारा हर बहाना
जँचता नहीं है
मेरे खयाली स्वेटर के सामने

हर बार मैं रंगती हूँ ऊन को
तुम्हारी दिनचर्या के रंग से
खुद से बचते भागते तुम
न मुझे देखते हो
न मेरी अधूरी चाहतों के इस
बनते बिगड़ते स्वेटर को
पर आखिरी सर्दी तक
ये हर साल उधेड़ा बुना जाएगा
तुम पूछ सकते हो क्यों
मेरा जवाब हर बार वही होगा

तुम नहीं समझोगे
प्रेम आखिर दुनियादारी से
कहीं अलग कहीं आगे की शै है।

अमरदीप


जितना मैंने लिखा भी नहीं है
उस से कहीं ज़्यादा पढ़ी गयी हो तुम
तुम्हारा चेहरा उतर आया है
इन पंक्तियों के बीच की खाली जगह में
हाशियों पर जाने कैसे उभर आया है तुम्हारा पता
और न जाने कैसे तुम्हारी खुशबू 
बन गयी है इन अधूरे गीतों की पहचान
सिर्फ नाम नहीं हो तुम
तुम एक अध्याय हो जो मेरी उम्र के
बहुत पहले आरंभ होता है
और जिसका अंत
इस एक जीवन में समायेगा नहीं
तुम वो विस्तार हो 
जिस पर अंकित हूँ एक बिंदु सा मैं
तुम्हारी छत पर गिरती 
सावन की पहली वर्षा की
लाखों बूँदों में से एक हूँ मैं
और सर्वव्यापी, सर्वज्ञाता सी तुम
उस एक बूँद को भी पहचान जाती हो
गिरने देती हो उसे अपने चेहरे पर
फिसलते हुए अपनी गाल के
उस गहरे गड्ढे में सिर्फ उसे ही रुकने देती हो
और सफल कर देती हो
मेरा बूँद होना
मेरी लायी आसमानी ठंडक
और तुम में बसी उल्काओं की गर्मी
मानों एक दूसरे के पूरक हैं
विषम होते हुए भी
हमारा जोड़, भाग, गुणा
सिर्फ एक होता है
एक पहेली सी, एक स्वप्न सी
किसी अलौकिक कलम से
गढ़ी गयी हो तुम
मेरी कविता
जितना मैंने लिखा भी नहीं
उस से कहीं ज़्यादा पढ़ी गयी हो तुम।

अमरदीप


क्या तुम मेरी कविता होना चाहोगी
शब्दों के तकिये पर सोना चाहोगी
पूरा है आकाश जो मन को अपना लो
अपने मन का तारा बोना चाहोगी
यादों का जंगल है राह की थाह नहीं
बोलो क्या मेरे संग खोना चाहोगी
जितने लोग दुगुने उस से चेहरे हैं
क्या तुम सिर्फ मेरी होना चाहोगी
ये बातों के मोती चाहत माला है
बन धागा तुम मुझे पिरोना चाहोगी
चाहा है छू लूँ ऐसे कि याद रहे
बोलो एक नया बिछौना चाहोगी

अमरदीप