Monday, June 11, 2018

महासागरों को मणिपुर की चुनौती : लेफ्टिनेंट विजया की शौर्य गाथा


देश के सुदूर पूर्व में छोटे से गाँव के एक किसान की बेटी क्या नहीं कर सकती अगर मन में ठान ले तो. यही कहानी है वर्दीवाला के इस अंक की नायिका की. आज से कुछ वर्ष पहले मणिपुर के बिश्नुपुर जिले में जन्मी विजया देवी ने कभी सोचा भी नहीं था कि एक दिन वो दुनिया भर के महासागरों को एक छोटी सी नौका से चुनौती देगी. बिश्नुपुर, इम्फाल घाटी से लगा हुआ एक सुन्दर इलाका है जो कि किसी समय आतंकवाद से सबसे ज्यादा प्रभावित था. ऐसे में वहाँ की लड़की का सेना में जाना अपने आप में एक बड़ी बात है.  न मणिपुर में न दिल्ली में अपनी स्नातकोत्तर पढाई करते समय विजया को कभी ये इल्म था कि वो एक दिन नौसेना की सफ़ेद वर्दी पहने गहरे नीले सागरों की सवारी करेगी. पिता कुंज्केश्वर  और माता बिनासखी देवी कि 29 वर्षीय पुत्री ने हाल ही में एवरेस्ट चढ़ने से भी कहीं ज्यादा जोखिम भरे काम को अंजाम दिया.  विजया ने दिल्ली से अंग्रेजी में एम.ए किया और तत्पश्चात बी. एड करने के बाद 2012 में नौसना की शिक्षा शाखा में बतौर अधिकारी प्रवेश लिया. हमेशा कुछ नया करने को तत्पर विजया को जब ‘तारिणी’ मिशन के लिए चुना गया तो उनकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा. 6 महिला अधिकारियों की टीम ने कुल 8 महीनों में तीन महासागरों को पार किया और और चार महाद्वीपों में पाँच देशों की धरती पर पाँव रखा. 254 चुनौती भरे दिन और हर एक दिन ऊंची लहरों, ख़राब मौसम और अनजाने कितने ही खतरों से खेलती हुई विजया और उनकी टीम अभी हाल ही में वापस स्वदेश लौटी है.
मणिपुर राइफल्स से रिटायर हुए उनके पिता ने विजया को वर्दी की ओर आकर्षित किया. धुन की पक्की विजया ने कड़ी म्हणत और लगन से वर्दी पहनने के अपने सपने को साकार किया. तारिणी मिशन पर जाने से पहले विजया नौसेना अकादमी में 2 वर्ष तक प्रशिक्षक रह चुकी हैं. संगीत और कलाकारी की शौक़ीन लेफ्टिनेंट विजया ने नौसेना के इतिहास में अपना नाम स्वर्णाक्षरों में लिख दिया है. उनकी शौर्यगाथा आतंकवाद से जूझ रहे मणिपुर के युवाओं को साहस और देशप्रेम का सबक देगी और चुनौतियों से मुकाबला करने की हिम्मत भी. विजया के विजयी जज़्बे को ‘वर्दीवाला’ टीम का सलाम. 

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