Sunday, September 2, 2018

सेक्रेड गेम्स : सॅटॅलाइट टेलीविज़न को इन्टरनेट कि चुनौती


नेटफ्लिक्स पर सेक्रेड गेम्स और भी जाने क्या क्या
टाटा स्काई इत्यादि का अंत?

कुछ समय पहले टीवी पर एक सीरियल आया था ‘24’, जिस में अनिल कपूर ने मुख्य भूमिका निभाई थी. बहुत ही तेज़ गति थी, रोमांच था, रहस्य था और हर कड़ी एक बॉलीवुड की ब्लाक बस्टर सरीखी मनोरंजन से भरपूर थी. मगर ‘24’ शायद समय से पहले आ गया और भारतीय दर्शक ऐसे तेज़ तर्रार सीरियल के लिए तैयार नहीं थे. एक सप्ताह की प्रतीक्षा बड़ी लगती थी उस वक़्त. कपिल शर्मा की कॉमेडी नाइट्स और तारक मेहता का उल्टा चश्मा (जो शायद अब तक चल रहा है), बिग बॉस और सैकड़ों की संख्या में पारिवारिक कार्यक्रमों और रिएलिटी शोज़ ने हमारे दिलो दिमाग को बंदी बना रखा था. कई वर्ष पहले से अगर किसी भी फिल्म या देशी मनोरंजन चैनल को देख लें तो घुमा फिरा के वही सब परोसा जाता रहा है और आज भी वही दिया जा रहा है. पर ‘सेक्रेड गेम्स’ और नेटफ्लिक्स  या अमेज़न प्राइम पर मनोरंजन का जो मजमा आज लगा हुआ है वो शायद इस से पहले भारत में कभी नहीं था. किसी भी ‘डिश’ टीवी पर यही आप पूरे चैनल का पैकेज लेते हैं तो महीने में कम से कम 500 से 750 का खर्च उठाना ही पड़ेगा. यही अगर रिकार्डिंग की सुविधा के साथ लेना है तो और पैसे खर्च कीजिये. उस समय अगर बिजली चली जाती है तो फिर कोई उपाय नहीं है. ऐसे में नेटफ्लिक्स और जाने कितने ही ऐसे प्लेटफार्म आ चुके हैं जो मनोरंजन को आपकी सहूलियत के हिसाब से पेश करते हैं, लगभग उसी खर्च में. देखने के लिए टीवी के सामने बैठने की आवश्यकता भी नहीं है. टेबलेट, फ़ोन, लैपटॉप और टीवी किसी पर भी देख सकते हैं, जितने भागों में बाँट कर आप देखना चाहें, वैसे. सेंसर नहीं है, आप चुन सकते हैं क्या देखना है. कोई विज्ञापन नहीं है और न ही एक दिन या एक सप्ताह की लम्बी प्रतीक्षा करनी पड़ती है ये जानने के लिए कि ह्त्या किसने की या चोर कौन था या फिर आगे क्या होगा. विक्रम चंद्रा की इसी नाम की पुस्तक (जो ज़्यादातर लोगों ने नहीं पढ़ी होगी) पर आधारित है ‘सेक्रेड गेम्स’. बिना सेंसर के क्या क्या परोसा जा सकता है ये इस सीरियल को देखने से पता चलता है. धारावाहिक क्या है खुद आप देख सकते हैं. कथानक तेज़ है, हिंसा, सेक्स और सभी गलत चीज़ें बहुतायत में हैं, भाषा में गालियाँ अधिक हैं पर फिर भी कुछ है जो आपको बाँधे रखता है. कलाकारों ने मेहनत की है, और निर्देशकों ने कहानी के सिरों को कैसे कस कर पकड़ा है, ये ऐसे सभी प्लेटफॉर्म्स के सभी धारावाहिकों पर लागू है.
जी हाँ, टीवी पर परोसे जा रहे फूहड़ और बेतुके कार्यक्रमों से इन्टरनेट के ये नए धरातल बहुत आगे हैं और सम्पूर्ण मनोरंजन पर आधारित हैं. विदेशी सीरियलों के समकक्ष अगर हमारे अपने निर्देशकों को खड़ा होना है तो वाकई दम लगाना होगा. एकता कपूर की पीढ़ी के लिए ये चेतावनी नहीं है बल्कि अंत की दस्तक है. अब सिर्फ नेटफ्लिक्स के लिए ही विशेष तौर पर धारावाहिक और फ़िल्में बन रही हैं और वो दिन भी दूर नहीं जब कि 500 रुपये की टिकट और 750 रुपये के पॉप कॉर्न बेचने वाले नए सिनेमाघर भी बंद होने के कगार पर होंगे. पैसा आपका है और यकीनन ये आपका हक़ है कि उस पैसे का पूरा मूल्य आपको मिले. आने वाला कल बहुत बड़े बड़े दिग्गजों को चुनौती देने वाला है. बदलिए या मिट जाइए, ‘सेक्रेड गेम्स’ की इस नयी फसल का यही सन्देश है मनोरंजन की दुनिया के लिए.

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