Tuesday, October 20, 2015


घर में दो बच्चे  Tom & Jerry जैसे ही होते हैं न। अपने टॉम एंड जेरी के लिए


टॉम बिल्ला  टॉम बिल्ला
क्या क्या खाने आये हो
तुम हम को ही खाओगे
या पैक करा कर लाये

जेरी चूहा जेरी चूहा
मैं तुम को ही खाऊँगा
नमक लगा कर चाट बना कर
भरा पेट सो जाऊँगा

टॉम बिल्ला टॉम बिल्ला
मैं तो कितना छोटा हूँ
सर्दी के कपडे पहने हैं
इसलिए लगता मोटा हूँ

जेरी चूहा जेरी चूहा
भूख बहुत है तेज़ लगी
पर मैं तुझ को खाऊँ कैसे
तू है मेरी बहिन सगी।

Sunday, October 18, 2015

देखिये मित्र भी  कैसे  बन जाते हैं। गौतम राजरिशी ने प्रदीप मिश्र जी  का पता दिया और बात की बात में जनवादी  लेखक संघ की काव्य गोष्ठी में अपनी रचनाएँ सुनाने अवसर मिला कल। साथ में दादा कृष्णकांत  हैं और उनकी  कवितायेँ सुन कर एक अलग ही दुनिया  आभास हुआ। इतने महान कलाकार ही जगह मिलना एक साथ संभव  नहीं होता।
ये हिंदी में ब्लॉग भी कल की गोष्ठी की ही देन है। प्रभु जोशी जी से  भी मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। प्रदीप मिश्र और प्रदीप कांत दोनों ही मित्रों ने पता भी नहीं  दिया कि मैं पहली बार ऐसी किसी गोष्ठी में आया हूँ। अलकनंदा साने ( जो कि प्यार से ताई भी कहलाती हैं ) जी ने बाद में मुझे बताया कि मेरी पुस्तक 'खुद से मुलाकात ' कई वर्ष पहले किसी पुस्तक मेले से उन्होंने ली थी।
एक नए ही अनुभव के साथ वापस आया कल।
आप कविता पढ़ें
इस से पहले
ये ज़रूरी हो चुका है
कि कोई उस
कविता को जिए
फिर से नीलकंठ
उस गरल को पिए
और उस से
नीले नीले
शब्द उकेरे
और उन्हें कविता करके
आसमान पर फेरे