Friday, August 3, 2018

what is Nagalim?


नागालिम : आसान नहीं है समस्या का हल

हाल ही में श्री आर एन रवि ने, जो कि नागालैंड के लिए सरकार के वार्ताकार हैं, 2015 में प्रधानमंत्री की उपस्थिति में नागा नेताओं के साथ हुए समझौते (Framework Agreement) के कुछ पहलुओं पर रोशनी डाली. रवि ने किसी भी प्रदेश की सीमाओं में परिवर्तन की संभावना से इनकार किया है. समझौते में भारतीय महासंघ के भीतर ही नागाओं को विशिष्ट दर्जा देनी की बात स्वीकार की गयी है. समझौते के बाकी मुख्य बिंदु गोपनीय रखे गए हैं क्यूंकि उन से बाकी राज्यों पर सीधा असर पड़ता है. इस प्रकरण में नागालिम नाम बार बार उभरता है पर इसके बारे में आम नागरिकों को अधिक जानकारी नहीं है. आइये देखें क्या है नागालिम.
उत्तर पूर्व में चल रहा संघर्ष दुनिया में सबसे लम्बे चलने वाले संघर्षों में से है और हमारी सेनाएँ पिछले सात दशकों से इनसे मुकाबला कर रही हैं. ज्यादातर मुद्दे राजनीतिक हैं पर लम्बी उपेक्षा और बाहरी शक्तियों की मिलीभगत से मामला उलझ गया और जातीय राजनीतिक विरोध ने हथियारबंद संघर्ष का रूप ले लिया. एनएससीएन (नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ़ नागालैंड) इस संघर्ष में सबसे बड़ा और सबसे हिंसक दल था. सेनाओं की कार्रवाही और दल में कई विभाजनों के बाद 1997 से एनएससीएन( इसाक मुइवाह) के साथ युद्धविराम की स्थिति है. पर युद्धविराम ने दल की पूरी गतिविधियों पर रोक नहीं लगायी है और अपहरण, हत्याएँ और टैक्स वसूली जैसे कामों में हथियारबंद नागा और उनके सहयोगी लगे हुए हैं. पूरे उत्तर पूर्व को ही देश की मुख्यधारा में शामिल होने में काफी समय लग गया और  1962 में चीन के साथ हुए युद्ध ने देश का ध्यान उस और खींचा. इतना होने पर भी पिछले कुछ वर्षों में इस दिशा में कुछ काम हुआ है नहीं तो समूचा देश समस्या से अनभिज्ञ ही रहा है. मूलतः समस्या पहचान की है. नागा कोई एक जाति नहीं है बल्कि बीसेक छोटी बड़ी जनसंख्या वाली अलग अलग आदिवासी प्रजातियों का सामूहिक नाम है. आज़ादी के समय और उसके पहले भी देश के मुख्य भाग से दूर होने के कारण और विशिष्ट भौगोलिक और सामाजिक परिस्थियों के कारण नागा बाहुल्य वाले क्षेत्र अपने लिए अलग हिस्से की मांग करते रहे हैं और 1 दिसंबर 1963 को बृहत् असम के विभाजन के बाद नागालैंड का जन्म हुआ. ज्ञातव्य है कि संविधान की               धारा 371 A के अंतर्गत नागालैंड को विशिष्ट दर्जा प्राप्त है. पर नागा नेताओं का कहना है कि नागालैंड के अलावा भी असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और यहाँ तक कि म्यांमार (बर्मा) में भी जिन इलाकों में नागा बहुतायत में हैं उन्हें नागालैंड में शामिल करके नागालिम या बृहत् नागालैंड या ग्रेटर नागालैंड का निर्माण किया जाये. अलग देश की माँग से उतर कर नागालिम की बात करना नागा समस्या का आंशिक हल था. पर समय समय पर सरकार से अपनी नयी माँगें मनवाने के लिए नागालिम का दांव खेला जाता है. नागाओं से बातचीत और किसी भी प्रकार के समझौते का सर्वाधिक असर मणिपुर पर पड़ता है जिसके उत्तरी तीन जिलों में अलग अलग नागा प्रजातियाँ बाहुल्य में हैं. दूसरी बात ये भी कि मणिपुर पहुँचने के लिए मुख्य राजमार्ग (राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 2) नागालैंड से हो कर गुज़रता है और रेलवे लाइन भी दीमापुर तक ही है. ऐसे में नागा उपद्रवी मणिपुर आने जाने वाले रास्तों को बंद करके अपनी माँगें मनवाते रहे हैं. सरकार का कहना है कि नागों के साथ युद्धविराम सिर्फ नागालैंड में ही मानी है जबकि उनके हथियाrबंद आतंकवादी अन्य सीमावर्ती राज्यों में भी हैं. मणिपुर के सक्रिय आतंकवादी गुट और राजनीतिक दल नहीं चाहते कि नागालैंड उनकी भूमि पर अधिकार जताए. उनकी माँग है कि सेनाएँ मणिपुर में सक्रिय नागा आतंकवादियों के विरुद्ध कार्रवाही करे. मणिपुर की जनता इन सब बातों को देखते हुए बार बार नागा समझौते का विरोध करती है. उनकी मांग है कि फ्रेमवर्क अग्रीमेंट के मुख्य बिंदु सार्वजानिक किये जाएँ. सरकार अब भी इस पर चुप्पी साधे हुए है क्यूंकि ये समस्या जटिल है और सभी पक्षों की सहमति होना लगभग असंभव है.

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