सेना में आने वाले बदलाव :
देखें ऊँट किस करवट बैठता है
सेना के पदों में लगभग डेढ़ दशक पहले बदलाव हुए थे जब कि बग्गा कमीशन या
ए वी सिंह कमेटी के सुझावों के तहत सेकंड लेफ्टिनेंट का पद समाप्त कर दिया
गया और लेफ्टिनेंट कर्नल तक के पद को ‘टाइम स्केल’ कर दिया गया. सेना के
बदलते ढांचे और कार्यप्रणाली को देखते हुए समय समय पर ऐसे बदलावों की आवश्यकता
होती है. अब 35 वर्ष के लम्बे अंतराल के बाद सेना अधिकारियों के पदों में बड़े
बदलाव करने जा रही है और सेनाध्यक्ष ने इस वर्ष नवम्बर तक इस बारे में रिपोर्ट
माँगी है. सेना में पदोन्नति एक जटिल प्रक्रिया है और हर पद पर अधिकारियों की
संख्या निश्चित है. 70 के दशक में बीच में कहीं फाइटिंग आर्म्स और सर्विसेज को अलग करके अधिकारियों और उनके पदोन्नति
से जुड़े मामलों में एक दरार आ चुकी है. इस के साथ ही वरिष्ठ अधिकारियों को कमांड और स्टाफ दो धाराओं में
विभाजित करके कई सक्षम व्यक्तियों को को डिवीज़न, कोर और सेना की कमान का मौक़ा नहीं
मिलता. ये फैसला ला कितना तर्कसंगत था, वादविवाद का विषय रहा है और अब भी है. इसके
साथ ही अगर सिविल सर्विसेज को देखा जाये तो हर वेतन आयोग में उन्होंने सभी
सेनाओं की उपेक्षा करते हुए पद क्रम में अपने अधिकारियों को बहुत आगे कर दिया है. एक
आईएस अधिकारी 18 वर्ष की सेवा में संयुक्त
सचिव (जॉइंट सेक्रेटरी) बन जाता है जो कि वेतनमान के हिसाब से मेजर जनरल (औसतन 28 वर्ष की सेवा के बाद
चुनिन्दा अधिकारी ही इस पद को पा सकते हैं) के समकक्ष है. सेना में अफसरों के लिए
नौ पद हैं जब कि सिविल सर्विसेज में केवल छह और चूंकि सिविल सेवा के अधिकारी ग्रुप
A सेवाओं में आते हैं, सभी कम से कम जॉइंट सेक्रेटरी या समकक्ष पदों से
सेवानिवृत्त होते है जब कि अधिकतर सैन्य अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल या समकक्ष पद से. काम के हिसाब से सेना और
एनी सेवाओं की कोई तुलना नहीं है और ऐसी बात से सेना के पदों की गरिमा ही कम होती
है. पर ये तुलना सभी जगह होती है खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ दोनों सेवाओं के
अधिकारी एक साथ काम कर रहे हैं. इसका सबसे अधिक दुष्प्रभाव रक्षा मंत्रालय में
देखा जा सकता है. पुलिस और अन्य विभागों में चूंकि NFU लागू है, ‘अतिरिक्त’ प्रत्यय
लगाकर हर पद पर बिना कार्यभार के पदोन्नति आम बात है. किसी राज्य में जहाँ एक
महानिदेशक (डायरेक्टर जनरल) होना चाहिए 10 से 15 अतिरिक्त महानिदेशक होना
आश्चर्य की बात नहीं है. पर सेना में पदोन्नति के लिए हर स्तर पर रिक्तियां नियत हैं. वेकेंसी न होने पर काबिल से काबिल
अधिकारी को भी पदोन्नत नहीं किया जा सकता. आम तौर पर हर पद पर लगभग 40% अधिकारियों कि छंटनी हो
जाती है. ऐसे में मध्यम स्तर पर जहाँ अधिकारियों की बहुतायत है वहीं जूनियर और
फील्ड में काम करने वाले पदों पर अधिकारियों की कमी है. इस से जूनियर पदों पर काम
का बोझ बढ़ जता है और वहीं मध्यम पदों पर पदोन्नति के पर्याप्त अवसर न होने के कारन
असंतोष. एक मुद्दा यह भी है कि बाकी सभी सेवाओं में रिटायरमेंट की आयु सीमा 60 वर्ष है, वहीं सेनाओं में
पद के हिसाब से 99% से भी ज्यादा अधिकारी 54 से 58 की आयु में सेवा निवृत्त
हो जाते हैं. बहुत कोशिश के बाद भी न तो सेना और न ही सरकार ऐसे अधिकारियों को एक
अच्छा दूसरा/वैकल्पिक कैरियर देने में सफल रहे हैं. आवश्यकता है कि बाकी सेवाओं की
ही तरह सेनाओं में भी सपोर्ट कैडर शामिल किया जाये और शार्ट सर्विस कमीशन को
प्राथमिकता दी जाये. 5 और 10 वर्ष के कार्यकाल के बाद इन अधिकारियों को अन्य सरकारी/
अर्द्धसरकारी विभागों में शामिल किया जा सकता है. इस से न केवल सेना में प्रचुर
मात्रा में अधिकारी मिल सकेंगे बल्कि पदोन्नति न मिलने से पैदा होने वाली विसंगति
को भी ठीक किया जा सकेगा. साथ ही पूरा सरकारी तंत्र भी अच्छे अधिकारियों के आने से
लाभान्वित होगा. सेना के बजट का एक बड़ा भाग बजट वेतन (2018-19 वित्त वर्ष में 80,945 करोड़ रुपए) और पेंशन (98,989 करोड़ रूपए) में जाता है,
ज्ञातव्य रहे कि इसका भी एक मोटा हिस्सा रक्षा मंत्रालय के असैनिक कर्मचारी के लिए
है जो कि न केवल पूरे 60 वर्ष की सेवा के बाद यानि अधिकतम वेतन (अधिकतम पेंशन) पर
रिटायर होते हैं बल्कि बाकी सेवाओं की तरह एक रैंक एक एक पेंशन (OROP) और NFU के
तहत पदोन्नति के भी हकदार होते हैं. मीडिया रिपोर्ट देखें तो लगेगा कि रक्षा बजट
का हिस्सा सिर्फ सैनिकों और अधिकारियों के वेतन और पेंशन पर खर्च होता है, पर
वास्तविक स्थिति कुछ और है.
एक अन्य महत्वपूर्ण मुद्दा ये भी है कि सेना ने कई और विभागों जैसे कि DGQA,
ऑर्डनेन्स फैक्ट्रीज, MES इत्यादि को भी अधिकारी दिए हुए हैं, जो कि सेना में
अधिकारियों की संख्या बढ़ाते हैं और आंकड़ों को गलत दिशा में ले जाते हैं. समय है कि
सेना इन सब विभागों से नाता तोड़े और केवल युद्ध से सीधे संबंधित विभागों को ही
प्राथमिकता दे. इसी तरह सेना में सेवा वर्ग (सर्विसेस) के कई विभागों में जैसे
चिकित्सा, EME, ENGINEERS, RVC, ASC, ऑर्डनेन्स कोर की कार्यप्रणाली में बदलाव ला
कर दूसरी(असैनिक) एजेंसियों को शामिल किया जा सकता है.
ये कहना गलत नहीं होगा कि आतंरिक नीतियों की वजह से सेना में अधिकारी पदों में
बदलाव न होने के कारण एक बड़ा वर्ग पदोन्नति न पाकर असंतुष्ट है. कई विभागों को
छोटा कर के और उनकी कार्यप्रणाली में बदलाव और सुधार ला कर स्थिति में परिवर्तन
लाया जा सकता है. साथ ही अधिकारियों के कार्यकाल और भर्ती की प्रक्रिया में शार्ट
सर्विस कमीशन को प्राथमिकता दे कर और मौजूदा अधिकारी पदों में कमी करके, जिसमें
ब्रिगेडियर के पद को हटाने का अनुमोदन शामिल है, सेना वर्ष के अंत तक बड़े परिवर्तन
लाने जा रही है. इस से जुड़े और कई मुद्दे हैं जिन पर चर्चा चल रही है. मीडियावाला
की टीम अपने पाठकों को इस मुद्दे के सभी पहलुओं की विस्तृत जानकारी देगी.
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