देखिये मित्र भी कैसे बन जाते हैं। गौतम राजरिशी ने प्रदीप मिश्र जी का पता दिया और बात की बात में जनवादी लेखक संघ की काव्य गोष्ठी में अपनी रचनाएँ सुनाने अवसर मिला कल। साथ में दादा कृष्णकांत हैं और उनकी कवितायेँ सुन कर एक अलग ही दुनिया आभास हुआ। इतने महान कलाकार ही जगह मिलना एक साथ संभव नहीं होता।
ये हिंदी में ब्लॉग भी कल की गोष्ठी की ही देन है। प्रभु जोशी जी से भी मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। प्रदीप मिश्र और प्रदीप कांत दोनों ही मित्रों ने पता भी नहीं दिया कि मैं पहली बार ऐसी किसी गोष्ठी में आया हूँ। अलकनंदा साने ( जो कि प्यार से ताई भी कहलाती हैं ) जी ने बाद में मुझे बताया कि मेरी पुस्तक 'खुद से मुलाकात ' कई वर्ष पहले किसी पुस्तक मेले से उन्होंने ली थी।
एक नए ही अनुभव के साथ वापस आया कल।
ये हिंदी में ब्लॉग भी कल की गोष्ठी की ही देन है। प्रभु जोशी जी से भी मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। प्रदीप मिश्र और प्रदीप कांत दोनों ही मित्रों ने पता भी नहीं दिया कि मैं पहली बार ऐसी किसी गोष्ठी में आया हूँ। अलकनंदा साने ( जो कि प्यार से ताई भी कहलाती हैं ) जी ने बाद में मुझे बताया कि मेरी पुस्तक 'खुद से मुलाकात ' कई वर्ष पहले किसी पुस्तक मेले से उन्होंने ली थी।
एक नए ही अनुभव के साथ वापस आया कल।
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